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Counselling Story:7 Ways a Teen Turned Fear into Focus

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इस Counselling story में आप जानेंगे एक ऐसे teenager की real life journey, जिसने डर और confusion से निकलकर focus और clarity पाई। इस ब्लॉग में बताए गए 7 आसान तरीके हर टीनेजर के लिए मददगार साबित हो सकते हैं — चाहे वो करियर को लेकर उलझन में हो, पढ़ाई में फोकस की कमी हो या self-confidence की problem.

Table of Contents

Counselling Story: A Teen’s Inner Battle and the 7 Steps to Clarity

मैं एक School और Career Counselor हूं, और अक्सर ऐसे Teenagers से मिलती हूं जिनके चेहरे पर मुस्कान होती है लेकिन मन में उलझन और डर छिपा होता है। ऐसा ही एक 17 साल का स्टूडेंट– अभिषेक (बदला हुआ नाम)। एक अच्छे स्कूल में पढ़ता था, क्लास Regular attend करता था, Homework भी समय पर करता था, लेकिन उसके अंदर एक बेचैनी थी जिसे कोई देख नहीं पा रहा था।
उसके माता-पिता को लगा कि शायद वो Career को लेकर Confused है, इसलिए Counselling के लिए भेजा। लेकिन बात सिर्फ Career की नहीं थी — वो अंदर से थक चुका था, खुद पर भरोसा खो चुका था, और लगातार Comparison और Pressure ने उसकी सोच को धुंधला कर दिया था।

सात छोटे लेकिन असरदार बदलावों ने अभिषेक की जिंदगी को नई दिशा दी। ये एक सच्ची कहानी है जो हर Parent और हर Student को जरूर पढ़ना चाहिए ।

1. अपनी फीलिंग्स छुपाओ मत – उन्हें शेयर करना सीखो
(Sharing emotions is the first step toward healing and clarity)

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शुरुआती Session में अभिषेक बहुत कम बोलता था — बस “हां”, “नहीं”, या हल्की-सी मुस्कान। एक दिन मैंने उससे पूछा, “क्या कभी ऐसा लगता है कि सब कुछ कंट्रोल से बाहर जा रहा है?” थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने कहा, “हर दिन ऐसा लगता है जैसे किसी रेस में हूं, लेकिन समझ नहीं आता कि किस दिशा में दौड़ रहा हूं।”
यही वो पल था जब अभिषेक अपने असली Emotion को शब्द दिए। जब कोई स्टूडेंट खुलकर बात करता है, तभी असली समस्या सामने आती है। जब तक डर अंदर छिपा रहता है, वो और गहरा होता जाता है। लेकिन जैसे ही वो बोलकर बाहर आता है, हीलिंग शुरू हो जाती है।

Parents कभी-कभी सिर्फ सुनना ही सबसे बड़ी मदद होती है। अपने बच्चों से judgment-free बातचीत कीजिए।

2. डर को समझो और अपनाओ – तभी उसे संभालना आसान होगा (Understanding and accepting fear makes it easier to manage)

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बचपन से हमें सिखाया जाता है कि “डरो मत”, “मजबूत बनो”। लेकिन सच्चाई यह है कि डरना एक सामान्य भावना है, और ये सभी को होता है — चाहे वह टॉपर हो या औसत स्टूडेंट।
अभिषेक को लगता था कि वह कमजोर है क्योंकि उसे बार-बार घबराहट होती थी। मैंने उसे बताया कि डर से भागना नहीं, बल्कि उसे समझना और मैनेज करना ज़रूरी है। जब उसने यह समझा कि वह अकेला नहीं है — और भी स्टूडेंट्स ऐसा ही महसूस करते हैं — तो उसका गिल्ट कम होने लगा।

छोटा बदलाव: जब आप अपनी Feelings को स्वीकार करते हैं, तो आप उन्हें manage करना सीखते हैं।

3. पढ़ाई को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटो – एक बार में सब कुछ नहीं होता (Break tasks into manageable chunks to reduce overwhelm and stay consistent)

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अभिषेक अक्सर ओवरवेल्म महसूस करता था। जैसे ही किताबें खोलता, उसे लगता – ये सब कैसे पूरा होगा? “साइंस का पूरा सिलेबस कैसे होगा?” “बोर्ड्स में टॉप कैसे करूं?”
हमने एक सिंपल तरीका अपनाया — chunking technique। पूरा सिलेबस एक साथ नहीं, हर दिन बस 1 या 2 टॉपिक। पहले दिन सिर्फ एक टॉपिक पढ़ा। दूसरे दिन उसी से जुड़ा एक छोटा टेस्ट। ये छोटे-छोटे कदम धीरे-धीरे उसके अंदर एक आत्मविश्वास लाने लगे।

स्टूडेंट्स के लिए टिप: रोज़ाना एक छोटा लक्ष्य तय कीजिए और उसे पूरा करिए। माइंड को ‘success’ का एहसास मिलेगा, जिससे मोटिवेशन खुद बढ़ेगा।

4. सोशल मीडिया की लिमिट तय करो – दूसरों से तुलना बंद करो (Limit social media use to avoid distractions and comparison traps)

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अभिषेक ने एक दिन कहा, “जब भी Instagram खोलता हूं, लगता है मेरी Life सबसे boring है।” Social Media पर हर कोई अपनी जिंदगी का बेस्ट पार्ट दिखाता है, लेकिन रियल स्ट्रगल कोई नहीं दिखाता।
वो दूसरों की उपलब्धियों को देखकर खुद को कम समझने लगा था। हमने तय किया — दिन में सिर्फ 30 मिनट सोशल मीडिया के लिए, वो भी शाम को। पढ़ाई के समय पूरा मोबाइल ब्रेक। उसने Motivational और Educational Pages को फॉलो करना शुरू किया और Negative Content को unfollow कर दिया।
नतीजा: कम disturbance, ज़्यादा focusऔर एक अलग-सी शांति।

5. एक सरल एवं अनुशासनात्मक दिनचर्या बनाओ – दिमाग को स्ट्रक्चर चाहिए (A predictable daily routine boosts focus, energy, and reduces stress)

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अभिषेक की दिनचर्या अनियमित थी — देर से उठना, कभी भी पढ़ाई करना, खाने का कोई समय नहीं और रात भर फोन चलाना। इसका असर उसकी नींद, एनर्जी और पढ़ाई — तीनों पर पड़ रहा था।
हमने एक बेसिक रूटीन बनाया:
👉 सुबह 7 बजे उठना
👉 सुबह दो स्टडी सेशन
👉 दोपहर का भोजन फैमिली के साथ
👉 शाम की सैर या रिलैक्सेशन टाइम
👉 रात को रिवीजन और समय पर सोना

रूटीन का असर: जब दिन का स्ट्रक्चर क्लियर होता है, तो दिमाग कम थकता है और बेहतर परफॉर्म करता है।

6. मल्टीटास्किंग छोड़ो – एक समय पर एक काम करो (Single-tasking improves concentration and helps you absorb better)

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आजकल मल्टीटास्किंग को स्किल माना जाता है, लेकिन असल में यह ध्यान को भटका देता है। अभिषेक मैथ पढ़ते वक्त व्हाट्सऐप चेक करता था, बैकग्राउंड में गाने चलते थे, और दिमाग फ्यूचर वरी में उलझा रहता था।
हमने एक सिंपल रूल अपनाया – “एक समय पर एक ही काम”। जब पढ़ाई, तब सिर्फ पढ़ाई। जब ब्रेक, तब पूरा रिलैक्स। 30 मिनट की Single-Tasking Practices ने उसकी efficiency को Doubled कर दिया।

Classroom में भी यही जरूरी है — ध्यान से सुनो, सवाल पूछो, और बाद में Revise करो। इससे clarity और confidence दोनों बढ़ते हैं।

7. मदद मांगने में झिझको मत – Strong वही होते हैं जो Support लेते हैं (Asking for help is a strength, not a weakness—build your support system)

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अभिषेक का सबसे बड़ा डर था – “अगर मैंने मदद मांगी तो लोग क्या सोचेंगे?” उसे लगता था कि वो वीक माने जाएगा। मैंने उससे सिर्फ एक लाइन कही:
“Strong वो लोग होते हैं जो समय पर Help लेते हैं।”
उसके बाद उसने टीचर्स से डाउट पूछने शुरू किए, पैरेंट्स के साथ खुलकर बात करने लगा, और रेगुलर काउंसलिंग सेशन्स में खुद को एक्सप्रेस करने लगा।
मदद मांगना कमजोरी नहीं, समझदारी होती है, और यही समझ उसकी सबसे बड़ी ताकत बनी।

जब डर से सामना होता है, तभी असली Growth की शुरुआत होती है।

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अभिषेक आज भी एक नॉर्मल स्टूडेंट है। वह टॉपर नहीं है, लेकिन अब वह डर में जीता नहीं है। अब वह समझता है कि डर आ सकता है, लेकिन उसे समझदारी से संभालना भी आ सकता है।
हर स्टूडेंट के अंदर यह क्षमता होती है — बस ज़रूरत होती है सही सपोर्ट, थोड़ी गाइडेंस और कुछ छोटे-छोटे बदलावों की।
Dear Parents कभी-कभी सिर्फ इतना कहना ही काफी होता है – “हम तुम्हारे साथ हैं।”
और Students याद रखो – बदलाव की शुरुआत हमेशा एक छोटे से कदम से होती है।

Say one thing to yourself every day – “मैं कोशिश करूंगा, और मैं आगे बढ़ूंगा।”

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